मनुष्यता...
मनुष्यता... बेटी, तुम इस शहर के सबसे बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट ठा. गजेंद्र सिंह की इकलौती बेटी हो। अरबों रुपये की प्रापर्टी का एकमात्र वारीस। तुमसे शादी करने के लिए तो देश-विदेश के हजारों करोड़पति परिवार के लडके तैयार बैठे हैं और तुम उस दो कौड़ी के ढोर डॉक्टर रमेश से शादी की जिद पाले बैठे हो। पता नहीं क…
सफारी सूट
प हली तनख्वाह मिलते ही रामलाल ने पिताजी के लिए नया सफारी सूट खरीदा और सीधा पहुँचा स्टेशन रोड पर स्थित उनकी छोटी-सी चाय की दुकान पर। उसने सफारी सूट खरीदने के बाद बचे लगभग 27 हजार रुपये एक लिफाफे में भरकर रख लिए थे। पहुँचते ही पिताजी के चरण स्पर्श कर बोला, "बापू, ये सफारी सूट आपके लिए। और ये म…
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बदहवास आलम अजीब वक्त...
बदहवास आलम अजीब वक्त... दर्द के सैलाब मे डूबने निकले हैं शब्दों के रथ पर घूमने निकले हैं बागबान से संग दिल सख्त नहीं हम आहों की आहट से मोम बन पिघले हैं जो प्रतीकों से राहें और मंजिल दिखाते हैं उनकी निगाह मे वे बाजीगर ,पगले हैं बदहवास आलम ,अजीब वक्त है ईमां के अर्थो - आयाम बदले हैं मौत पल रही है कोख…
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मेरे ख़्वाब
चलो ना  बादलों पर चलें धुँए जैसे उड़ते उड़ते  लगाए उनको गले    नँगे पाँव से छू ले  नीले गगन के तले   कोमल ठंडे ठंडे जैसे रूई में हो पले   हाथों में ले लूँ  मन में इक सपना चले   यहीं बस जाऊं और भर लूँ  इनको पलकों तले   चलो ना बादलों पर चलें ...........!   सीमा कपूर चोपड़ा दाहोद,गुजरात
खुशीयाँ
खुशीयाँ कैद नहीं रहती किसी तहखाने में. ना ऊची हवेली में. ना ही बड़े घराने में. देखा है मैने अक्सर उन्हें . विचरण करते हुए. हरे -भरे खेतों में. खलिहानो में. खूबसूरत खुले मैदानो में. नतमस्तक होते देखा है. मंदिर में.गुरूद्वारे में. प्रकृति के ख़ूबसूरत नजारे में. खिलखिलाते देखा है. दोस्ती में. यारी मे…
अब छोड़ दिया मैने
बार-बार घड़ी देखना, अब छोड़ दिया मैने, उसका इंतजार करना, अब छोड़ दिया मैंने ।   ख़ुदा की इबादत करना ही भूल गया हूँ मैं, मंदिर-मस्ज़िद में जाना, अब छोड़ दिया मैंने ।   अपनी क़लम पर ही भरोसा कर रहा हूँ मैं, उस पर भरोसा करना, अब छोड़ दिया मैंने ।   अब नई पोशाकें पहनने की ज़रूरत नहीं मुझें, रोज़ उससे मिलने जाना,…